अधिमास – Adhimas Vrat
( श्रुति – स्मृति – पुराणादि ) – जिस महीनेमें सूर्यसंक्रान्ति १ न हो, वह महीना अधिमास होता है और जिसमें दो संक्रान्ति हों, वह क्षयमास होता है । इसको ‘ मलिम्लुच ‘ भी कहते हैं । अधिमास ३२ महीने,२ १६ दिन और ४ घड़ीके अन्तरसे आया करता है और क्षयमास १४१ वर्ष पीछे और उसके बाद १९ वर्ष पीछे आता है । क्षयमास कार्तिकादि तीन महीनोंमेंसे होता है । लोकव्यवहारमें अधिमासके ‘ अधिक मास ‘, ‘ मलमास ‘, ‘ मलिम्लुच मास ‘ और ‘ पुरुषोत्तममास ‘ नाम विख्यात है । चैत्रादि १२ महीनोंमें वरुण, ३ सूर्य, भानु, तपन, चण्ड, रवि, गभस्ति, अर्यमा, हिरण्यरेता, दिवाकर, मित्र और विष्णु – ये १२ सूर्य होते हैं और अधिमास इनसे पृथक् रह जाता है । इस कारण यह मलिम्लुच मास कहलाता है । ‘ अधिमासमें ‘ फल – प्राप्तिकी कामनासे ४ किये जानेवाले प्रायः सभी काम वर्जित हैं और फलकी आशासे रहित होकर करनेके आवश्यक सब काम किये जा सकते हैं । यथा – कुएँ, बावली, १ तालाब और बाग आदिका आरम्भ और प्रतिष्ठा; किसी भी प्रकार और किसी भी प्रयोजनके व्रतोंका आरम्भ और उत्सर्ग ( उद्यापन ); नवविवाहिता वधूका प्रवेश; पृथ्वी, हिरण्य और तुला आदिके महादान; सोमयज्ञ और अष्टकाश्राद्ध ( जिसके करनेसे पितृगण प्रसन्न हों ); गौका यथोचित दान; आग्रयण ( यज्ञविशेष नवीन अन्नसे किये जानेवाला यज्ञ; यह वर्षा ऋतुमें ‘ सावाँ’ ( साँवक्या ) से, शरदमें चावलोंसे और वसन्तमें जौसे किया जाता है ); पौसरेका प्रथमारम्भ, उपाकर्म ( श्रावणी पूर्णिमाका ऋषिपूजन ); वेदव्रत ( वेदाध्ययनका आरम्भ ); नीलवृषका विवाह; अतिपत्र ( बालकोंके नियतकालमें न किये हुए संस्कार ) ; देवताओंका स्थापन ( देवप्रतिष्ठा ); दीक्षा ( मन्त्रदीक्षा, गुरुसेवा ); मौज्जी – उपवीत ( यज्ञोपवीत – संस्कार ); विवाह; मुण्डन ( जड़ला ), पहले कभी न देखे हुए देव और तीर्थोंका निरीक्षण, संन्यास, अग्निपरिग्रह ( अग्निका स्थायी स्थापन ); राजाके दर्शन, अभिषेक, प्रथम यात्रा, चातुर्मासीय व्रतोंका प्रथमारम्भ, कर्ण – वेध और परीक्षा – ये सब काम अधिमासमें और गुरु – शुक्रके अस्त तथा उनके शिशुत्व और बालत्वके तीन – तीन दिनोंमे और न्यून मासमें भी सर्वथा वर्जित हैं । इनके अतिरिक्त तीव्र ज्वरादि प्राणघातक रोगादिकी निवृत्तिके रुद्रजपादि अनुष्ठान; कपिलषष्ठी जैसे अलभ्य योगोंके प्रयोगः अनावृष्टिके अवसरमें वर्षा करानेके पुरश्चरण; वषटकारवर्जित आहुतियोंका हवन; ग्रहणसम्बन्धी श्राद्ध; दान और जपादि; पुत्रजन्मके कृत्य और पितृमरणके श्राद्धदि तथा गर्भाधान, पुंसवन और सीमन्त – जैसे संस्कार और नियत अवधिमें समाप्त करनेके पूर्वागत प्रयोगादि किये जा सकते हैं ।
१. असंक्रान्तिमासोऽधिमासः स्फुटः स्याद्
द्विसंक्रान्तिमासः क्षयाख्यः कदाचित् । ( ज्योतिःशास्त्र )
२. द्वात्रिंशद्भिर्गतैर्मार्दिनैः षोडशभिस्तथा ।
घटिकानां चतुष्केण पतति ह्यधिमासकः ॥ ( वसिष्ठसिद्धान्त )
३. वरुणः सूर्यो भानुस्तपनश्चण्डो रविर्गभस्तिश्च ।
अर्यमहिरण्यरेतोदिवाकरा मित्रविष्णू च ॥ ( ज्योतिःशास्त्र )
४. न कुर्यादधिके मासि काम्यं कर्म कदाचन । ( स्मृत्यन्तर )
५. वाप्यारामतडागकूपभवनारम्भप्रतिष्ठे व्रता –
रम्भोत्सर्गवधूप्रवेशनमहादानानि सोमाष्टके ।
गोदानाग्रयणप्रपाप्रथमकोपाकर्मवेदव्रतं
नीलोद्वाहमथातिपन्नशिशुसंस्कारान् सुरस्थापनम् ॥
दीक्षोमौञ्जिविवाहमुण्डनमपूर्वं देवतीर्थेक्षणं
संन्यासाग्निपरिग्रहौ नृपतिसंदर्शाभिषेकौ गमम् ।
चातुर्मास्यसमावृती श्रवणयोर्वेधं परीक्षां त्यजेद्
वृद्धत्वास्तशिशुत्व इज्यसितयोर्न्यूनाधिमासे तथा ॥ ( मुहूर्तचिन्तामणि )