हिंदू धर्म के प्रमुख नाग । क्या आप इनको जानते है ?
बहुत प्राचीनकाल में लोग हिमालय के आसपास ही रहते थे। वेद और महाभारत पढ़ने पर हमें पता चलता है कि आदिकाल में प्रमुख रूप से ये जातियां थीं- देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, भल्ल, वसु, अप्सराएं, पिशाच, सिद्ध, मरुदगण, किन्नर, चारण, भाट, किरात, रीछ, नाग, विद्याधर, मानव, वानर आदि। इनमें से कुछ जातियां आलौकिक शक्तियों से संपन्न होती थी। नाग जाति भी आलौकिक जातियों में से एक थी। नागों में सबसे महत्वपूर्ण नाग शेषनाग थे।
शेषनाग क्या हजार फन वाले सांप थे या कि मनुष्य? यह शोध का विषय हो सकता है। हालांकि कई जगहों पर उन्हें एक पुरुष के रूप में भी चित्रित किया गया है। यह भी कहते हैं कि उनके मुख्यत: हजार भाई थे। यह भी कहते हैं कि वे अपनी इच्छा से नाग का रूप धारण करने की क्षमता रखते थे।
3. तक्षक : आठ प्रमुख नागों में से एक कद्रू के पुत्र तक्षक भी पाताल में निवास करते हैं। पाश्चात्य इतिहासकारों के अनुसार तक्षक नाम की एक जाति थी जिसका जातीय चिन्ह सर्प था। उनका राजा परीक्षित के साथ भयंकर युद्ध हुआ था। जिसमें परीक्षित मारे गए थे। तब उनके पुत्र जनमेजय ने तक्षकों के साथ युद्ध कर उन्हें परास्त कर दिया था। हालांकि पुराणकारों ने नागों के इतिहास को मिथक बनाकर उन्हें नाग ही घोषित कर दिया।
3. तक्षक : आठ प्रमुख नागों में से एक कद्रू के पुत्र तक्षक भी पाताल में निवास करते हैं। पाश्चात्य इतिहासकारों के अनुसार तक्षक नाम की एक जाति थी जिसका जातीय चिन्ह सर्प था। उनका राजा परीक्षित के साथ भयंकर युद्ध हुआ था। जिसमें परीक्षित मारे गए थे। तब उनके पुत्र जनमेजय ने तक्षकों के साथ युद्ध कर उन्हें परास्त कर दिया था। हालांकि पुराणकारों ने नागों के इतिहास को मिथक बनाकर उन्हें नाग ही घोषित कर दिया।
तक्षक ने शमीक मुनि के शाप के आधार पर राजा परीक्षित को डंसा लिया था। उसके बाद राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने नाग जाति का नाश करने के लिए नाग यज्ञ करवाया था। वेबदुनिया के शोधानुसार तक्षक का राज तक्षशिला में था। समुद्र के भीतर तक्षक नाम का एक नाग पाया जाता है जिसकी लंबाई लगभग 22 फुट की होती है और वह इतनी तेज गति से चलता है कि उसे कैमरे में कैद कर पाना मुश्किल है। यह सबसे भयानक सर्प होता है।
4. कर्कोटक : कर्कोटक और ऐरावत नाग कुल का इलाका पंजाब की इरावती नदी के आसपास का माना जाता है। कर्कोटक शिव के एक गण और नागों के राजा थे। नारद के शाप से वे एक अग्नि में पड़े थे, लेकिन नल ने उन्हें बचाया और कर्कोटक ने नल को ही डस लिया, जिससे राजा नल का रंग काला पड़ गया। लेकिन यह भी एक शाप के चलते ही हुआ तब राजा नल को कर्कोटक वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए।
शिवजी की स्तुति के कारण कर्कोटक जनमेजय के नाग यज्ञ से बच निकले थे और उज्जैन में उन्होंने शिव की घोर तपस्या की थी। कर्कोटेश्वर का एक प्राचीन उपेक्षित मंदिर आज भी चौबीस खम्भा देवी के पास कोट मोहल्ले में है। हालांकि वर्तमान में कर्कोटेश्वर मंदिर माता हरसिद्धि के प्रांगण में है।
5. पद्म : पद्म नागों का गोमती नदी के पास के नेमिश नामक क्षेत्र पर शासन था। बाद में ये मणिपुर में बस गए थे। असम के नागावंशी इन्हीं के वंश से है।
दरअसल, जनमेजय के नाग यज्ञ से भयभीत होकर शेषनाग हिमालय पर, कम्बल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में, कर्कोटक
महाकाल वन और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए थे।
उपरोक्त के अलावा महापद्म, शंख, कुलिक, नल, कवर्धा, फणि-नाग, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि तनक, तुश्त, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अहि, मणिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना, गुलिका, सरकोटा इत्यादी नाम के नाग वंश मिलते हैं।
कुछ पुराणों अनुसार नागों के प्रमुख पांच कुल थे- अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगला। कुछ पुराणों के अनुसार नागों के अष्टकुल क्रमश: इस प्रकार हैं:- वासुकी, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड़, महापद्म और धनंजय।
अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है, जिसमें वासुकी, तक्षक, पद्म, महापद्म प्रसिद्ध हैं। वेबदुनिया के शोधानुसार नागों का पृथक नागलोक पुराणों में बताया गया है। अनादिकाल से ही नागों का अस्तित्व देवी-देवताओं के साथ वर्णित है। जैन, बौद्ध देवताओं के सिर पर भी शेष छत्र होता है। असम, नागालैंड, मणिपुर, केरल और आंध्रप्रदेश में नागा जातियों का वर्चस्व रहा है।