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Previous birth of the characters of Mahabharata

Read about the previous birth of the characters of Mahabharata in Hindi

महभारत के किरदारों का पिछला जन्म

भीष्म


भीष्म अपने पिछले जन्म में एक वासु थे | एक दिन वह अपनी पत्नी के साथ ऋषि वशिष्ठ के आश्रम गए | गुरु तो वहां नहीं तह लेकिन वहां मोजूद एक गाय पर उनकी पत्नी का दिल आगया | उन्होनें वासु से उस गाय को उन्हें लाकर देने को कहा | वासु ने उन्हें खूब समझाया लेकिन वह न मानी | हार कर उन्होनें चुपके से वो गाय चुरा कर अपनी पत्नी को दे दी | जब ये बात गुरु वशिष्ठ को मालूम पड़ी तो उन्होनें वासु को श्राप दिया की वह अगले जन्म में इन्सान के रूप में जन्म लेंगे और पृथ्वी पर कई सालों तक जीवित रहेंगे |

ध्रितराष्ट्र

पिछले जन्म में ध्रितराष्ट्र एक क्रूर शासक थे | एक दिन उन्हें वन में एक हंस और उसके आस पास 100 छोटे छोटे हंस दिखाई दी | उन्हें हंस की आंख भा गयी और उन्होनें अपनी सेना को हुक्म दिया की वह उस हंस की आँख निकाल कर उसे दें ताकि वह उसे अपने महल में सजा सके |इसके साथ उसने उन 100 हंसों को भी मार डालने का हुक्म दिया |यही कारण है की अगले जन्म में न सिर्फ वह नेत्रहीन पैदा हुआ बल्कि उनके 100 पुत्रों का भी विनाश हुआ |

द्रौपदी

द्रौपदी पिछले जन्म में इन्द्रसेना नाम की महिला थी जिसकी शादी गुरु मोद्गाल्या से हुई थी | बहुत ही कम उम्र में गुरु का देहांत हो गया जिस वजह से इन्द्रसेना बिलकुल अकेली पड़ गयी | ऐसे में उन्होनें शिवजी की तपस्या शुरू की | शिवजी ने प्रसन्न हो कर उन्हें जब दर्शन दिए तो इन्द्रसेना उनके रूप पर मोहित हो गयी | उनके मुंह से पांच बार “पति चाहिए” निकल गया | शिवजी ने तथास्तु कह दिया और ये भी बताया की ये वरदान उन्हें एक ही जन्म में प्राप्त होगी |

शिशुपाल

शिशुपाल का जन्म इससे पहले रावण और हिरन्यकश्यप के रूप में हुआ | वह असल में विष्णु के सेवक थे जिसे ये श्राप मिला था की वह अगले 4 जन्मों में विष्णु के हाथों ही मारा जायेगा |

कर्ण

कर्ण पिछले जन्म में एक असुर राजा थे जिसका नाम था दम्बोभ्दाबा| उसने सूर्य देव की कठिन तपस्या की और वर में अपने लिए अमर होने का वरदान माँगा | लेकिन सूर्य ने कहा ये मुमकिन नहीं है | ऐसे में उसने सूर्य से 1000 कवच की मांग की |उसने ये भी कहा की इन सभी कवचों के नष्ट होने के बाद ही उसकी मौत मुमकिन हो | और वह भी ऐसे की मारने वाले ने 1000 साल तपस्या की हो | ऐसे में विष्णु भगवान ने नर नारायण नाम से जुड़वाँ भाई के रूप में अवतार लिया | जहाँ एक भिया तपस्या करता था दूसरा कवच को नष्ट करता था | जब 999 कवच नष्ट हो गए तो असुर स्वर्ग में जा कर छुप गया | कर्ण का जन्म उसी कवच के साथ हुआ | क्यूंकि वह सूर्य पुत्र थे इसलिए उनमें ऐसी कई खूबियाँ थी जो उन्हें अन्य लोगों से बहुत शक्तिशाली बनाती थी |

विदुर

पिछले जन्म में विदुर को मंडूक ऋषि से श्राप मिला था | दरअसल उन्होनें धोखे से कई लोगों का क़त्ल कर दिया था | ऐसे में ऋषि ने उन्हें श्राप दिया की वह अगले जन्म में शुद्र परिवार में जन्म लेंगे | जब हस्तिनापुर का सिंहासन बिना वारिस के रह गया तो महारानी सत्यवती ने अपने पुत्र वेदव्यास से मदद मांगी | उन्होनें कहा की दोनों रानियों को एक एक कर उके पास भेजा जाए | पहली रानी ने व्यास को देख आँखें बंद कर ली इसीलिए उनका पुत्र नेत्रहीन हुआ | दूसरी रानी उन्हें देख कर बेहोश हो गयी इसलिए उनका पुत्र कमज़ोर पैदा हुआ | तीसरी बार दोनों रानियाँ अपनी जगह एक दासी को भेज देती हैं | वह दासी पुत्र ही विदुर थे | सबसे पहले पैदा होने के बावजूद उन्हें सिंहासन नही मिलता क्यूंकि वह एक दासी पुत्र थे |

अर्जुन और कृष्ण

अर्जुन और कृष्ण पिछले जन्म में नर और नारायण के रूप में जन्म लेने वाले अर्जुन और कृष्ण का दम्बोभ्दाबा को मारने का कार्य अधूरा रह गया था | उस कार्य को सम्पूर्ण करने के लिए उन्होनें फिर अवतार लिया |नर रुपी अर्जुन ही फिर कर्ण को मार अपने मकसद को पूरा करते हैं |

अभिमन्यु

अभिमन्यु पिछले जन्म में कालयवन नाम का व्यक्ति था | कृष्ण ने उसे मार कर जला दिया था वह उसकी आत्मा को एक कपडे में बाँध एक डिब्बी में बंद कर दिया था | इस डिब्बी को उन्होंने अपने द्वारका के महल में रख दिया | उस समय भीम और हिडिम्बा का पुत्र घटोत्कच सुभद्रा की रक्षा के लिए वही रहता था | किसी वजह से कृष्ण ने उस डांट दिया तो उसने सुभद्रा से शिकायत लगा दी | सुभद्रा जब कृष्ण के कमरे में बात करने गयी तो डिब्बी की ओर आकर्षित हो गयी | उन्होनें जैसे ही डिब्बी को खोला वह आत्मा उनके गर्भ में ठहर गया | ऐसे भी कहते हैं की चन्द्र देव ने अभिमन्यु को धरती पर सिर्फ 16 सालो के लिए भेजा था | इसलिए अर्जुन ने सिर्फ चक्रव्यूह की आधी जानकारी ही सुभद्रा को दी क्यूंकि उन्हें मालूम था की अभिमन्यु की उम्र कम है और उनकी मृत्यु ऐसे होनी निश्चित है |

एकलव्य

एकलव्य एकलव्य कृष्ण के चाचा देवश्रवा के पुत्र थे | वह धनुर विद्या सीखना चाहते थे | जब उन्होनें गुरु द्रोणाचार्य से मदद मांगी तो उन्होनें ये कह मना कर दिया की वह नीच जाती के हैं | एकलव्य ने फिर अपने गुरु की मूर्ति बना उसके सामने अभ्यास करना शुरू किया और जल्द ही अर्जुन से बेहतर धनुर्धर बन गया | ये देख गुरु द्रोण ने उससे गुरु दक्षिणा में उसका हाथ का अंगूठा मांग लिया | जब कृष्ण रुक्मिणी स्वयंवर के दौरान वहां से जा रहे थे तो अपने पिता की रक्षा करते हुए एकलव्य की मौत हो गयी | तब कृष्ण ने उन्हें फिर जन्म ले द्रोणाचार्य से बदला लेने का आशीर्वाद दिया | अगले जन्म में वह द्रुपद पुत्र दृष्टद्युम्न की तरह पैदा हुए और उन्होनें द्रोणाचार्य की हत्या कर अपने साथ हुए गलत का बदला लिया |

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