साधना

Your Spiritual Journey

पुरातन और रहस्यमयी है वरुण आराधना

मकर पर विराजमान मित्र और वरुण देव दोनों भाई हैं और यह जल जगत के देवता है। उनकी गणना देवों और दैत्यों दोनों में की जाती है। भागवत पुराण के अनुसार वरुण और मित्र को कश्यप ऋषि की पत्नीं अदिति की क्रमशः नौंवीं तथा दसवीं संतान बताया गया है।

मित्र देव का शासन सागर की गहराईयों में है और वरुण देव का समुद्र के ऊपरी क्षेत्रों, नदियों एवं तटरेखा पर शासन हैं। वेदों में इनका उल्लेख प्रकृति की शक्तियों के रूप में मिलता है जबकि पुराणों में ये एक जाग्रत देव हैं। हालांकि वेदों में कहीं कहीं उन्हें देव रूप में भी चित्रित किया गया है।

वरुण देव देवों और दैत्यों में सुलह करने के लिए भी प्रसिद्ध हैं। वेदों में मित्र और वरुण की बहुत अधिक स्तुति की गई है, जिससे जान पड़ता है कि ये दोनों वैदिक ऋषियों के प्रधान देवता थे। वेदों में यह भी लिखा है कि मित्र के द्वारा दिन और वरुण के द्वारा रात होती है। पहले किसी समय सभी आर्य मित्र की पूजा करते थे, लेकिन बाद में यह पूजा या प्रार्थना घटती गई। वेबदुनिया के शोधानुसार पारसियों में इनकी पूजा ‘मिथ्र’ के नाम से होती थी। मित्र की पत्नी ‘मित्रा’ भी उनकी पूजनीय थी और अग्नि की आधिष्ठात्री देवी मानी जाती थी। कदाचित् असीरियावालों की ‘माहलेता’ तथा अरब के लोगों की की ‘आलिता देवी’ भी यही मित्रा थी। [source]

आराधना

काफी कम लोग जानते है की वरुण एक काफी पुरातन वैदिक देवता है जो किसी जमानेमें ईरान जैसे प्रदेशों में भी आराध्य थे। वरुण देव की आराधना से तुरंत लाभ मिल सकता है।

क्योकि वरुण पानी की देवता है उनके भक्तों को हमेशा जल दान करना चाहिए। सुबह उठाकर “ॐ वरुणदेवाय नमः” इस मंत्र का जाप करते हुए जल ग्रहण करे. जल ग्रहण के बाद किसी पेड़ जो जल दान करे।

हर शाम जलग्रहण करते वक्त उत्तर दिशा की और मुँह करे। दक्षिण दिशाके तरफ मुँह कर कभीभी जल ग्रहण न करे।

सफ़ेद वस्त्र पहनकर कही कभी समुद्र या नदी में डुबकी लगाएं और ऊपर दिए मन्त्र का १०८ बार जाप करे। इससे आपकी मनो कामना पूर्ण हो जायेगी।

 

One thought on “पुरातन और रहस्यमयी है वरुण आराधना

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version